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दो से चार -05-Jan-2022

भाग 9 

समय इतना क्यों धीरे धीरे चल रहा है ? ये घड़ी टिक टिक करके क्यों चलती है ? फर्राटे से दौड़ती क्यों नहीं ? ये दिल इतना क्यों धड़क रहा है ? क्या इसे किसी का इंतजार है ? अगर हां तो किसका ? 

आखिरकार दो बजने वाले थे । आशा ने 1.59 pm पर ही मैसेज डाल दिया
" Hi" 
उधर से ठीक दो बजे मैसेज आया 
"Hi" 
और दोनों में चैटिंग शुरू हो गई । सबसे पहले तो आशा ने पूछा 
"सर, एक बात कहें अगर आप अनुमति दें" 
"जी, कहिए" 
"आप अन्यथा तो नहीं लेंगे अगर हम आपसे कुछ निजी प्रश्न करें तो" ?
"नहीं, बिल्कुल नहीं । पूछिए, क्या पूछना है आपको" ?
"ये लव कुमार नाम कैसे रखा" ? 
इस सवाल पर थोड़ी देर चुप्पी रही मगर बाद में जवाब आया ।
"मेरे पिताजी का नाम राम कुमार था । उनके दो पुत्र हुए । बड़ा कुश कुमार और छोटा लव कुमार । इसलिए मेरा नाम लव कुमार रखा गया । वैसे घर में मुझे सब लोग "कुमार" ही बुलाते हैं" 
"वाऊ, कितना सुन्दर नाम है 'कुमार' । आप भी इसी नाम से लिखा करिए न" । आशा के स्वर में विनती के साथ साथ अधिकार भी साफ झलक रहा था ।
"ये भी ठीक है । आज से मैं कुमार नाम से ही लिखूंगा" । 

आशा को उम्मीद नहीं थी कि वह इतना बोल जाएगी और कुमार उसकी बात मान भी जाएंगे । आशा इस जवाब से बहुत खुश हुई । उस खुशी को बयान करने के लिए उसके पास शब्द नहीं थे । फिर उनमें चैटिंग होना शुरू हो गई । वे दुनिया भर की बातें करते रहे ।  इस तरह उनमें पहले तो औपचारिक चैटिंग होती रही । फिर कुमार ने कहा 
"क्यों न हम एक खेल खेलें !" 
"जी , कौन सा" ? 
"Guess करने का । मैं तुम्हारे बारे में guess करूंगा तुम मेरे बारे में । अभी तक हम दोनों एक दूसरे से भलीभांति परिचित भी नहीं हैं न । इसलिए देखते हैं कि अब तक की चैटिंग और साहित्यिक एप पर  लेखन से हम एक दूसरे को कितना जान पाये हैं ? मगर इसमें शर्त यह होगी कि झूठ नहीं बोलना है । वैसे भी , मुझे झूठ से सख्त घृणा है । जो भी guess करेगा , सामने वाला ईमानदारी से बताएगा कि वह सही है अथवा गलत । जो जीता वही सिकंदर । बोलो है मंजूर" ? 
आशा को तो जैसे मुंहमांगी मुराद मिल गयी थी । उसने तपाक से जवाब दिया
"जी" 
"तो ठीक है , पहले आप शुरू कीजिए" 
"जी, पहले आप" 
"लेडीज फर्स्ट" 
"नहीं सर , पहले आप" 
"ठीक है । पहले हम ही शुरुआत करते हैं " कुमार सोचना शुरू करते हैं । फिर guess कर लिखते है 
"आपको Mature लोग पसंद हैं" । 
आशा ने मैसेज किया 
"जी सर, बिल्कुल सही" । 
अब आशा की बारी थी । उसे गैस करना था । दो मिनट तक वह सोचती रही फिर लिखा 
"आप स्पष्टवादी है" । 
कुमार को बड़ा आश्चर्य हुआ कि दिव्या को कैसे पता चला ? उसने लिखा 
"जी , बिल्कुल सही । पर आपको कैसे पता चला" ?
आशा को अपनी कॉलर ऊंची करने का मौका मिल गया था । उसे अपनी समझ पर नाज हो गया था ।उसने जवाब दिया
"आप जैसे बुद्धिमान लेखक के पाठक हैं सर, तो कुछ असर तो आयेगा ना" ।

दोनों का स्कोर बराबर था । दोनों का एक एक guess एकदम सही था । स्कोर 1-1 हो गया था । अब guess करने की बारी कुमार की थी । उसने लिखा 
"आप कम बोलतीं हैं" 
आशा उर्फ दिव्या ने लिखा 
"जी सर, एकदम सही । हम बहुत ही नाप तौल कर कुछ शब्द ही बोलते हैं" 
अब बारी आशा की थी । वह सोचने में समय बहुत लेती थी । पांच मिनट तक सोचने के उपरांत उसने लिखा 
"आप एकांतप्रिय हैं" 
उधर से हंसने की इमोजी आई और मैसेज था 
"एकदम ग़लत जवाब । हमें एकांत बिल्कुल भी पसंद नहीं है । बल्कि हम तो महफ़िल की जान होते हैं" । 
आशा थोड़ी निराश हुईं । अब स्कोर 2-1 हो चुका था । कुमार के चेहरे पर मुस्कराहट और आशा के चेहरे पर खिसियाहट नजर आ रही थी । 
अब कुमार की बारी थी 
"आपके छोटे छोटे बच्चे हैं" 
अबकी बार हंसने की बारी आशा की थी । वह जोर से हंसी और लिखा 
"अभी तक हम अविवाहित हैं" 
कुमार एकदम सकते में आ गया था । कुमार का गैस गलत निकला । कुमार उसे लगभग चालीस साल की मान रहा था मगर इस जवाब से उसे निराशा हाथ लगी । अब बारी आशा की थी । 
"आप बहुत विद्वान हैं" 
अब कुमार सोच में पड़ गया । कोई भी आदमी अपने आपको विद्वान का प्रमाण पत्र कैसे दे सकता है ? उसने लिखा 
"मैं अपने आपको विद्वान कैसे कह सकता हूं" 
आशा ने लिखा "सर , चाहे आप कुछ भी लिखें, आपकी रचनाओं से आपकी विद्वता झलकती है । आप किसी से भी पूछ सकते हैं" । 
कुमार ने इसे मान लिया । अब स्कोर 2-2 हो चुका था । अब बारी कुमार की थी 
"आपको गानों का बहुत शौक है" 
"जी सर, बिल्कुल सही । हमें वास्तव में फिल्मी गानों का बहुत शौक है" 
कुमार बड़ा खुश हुआ । उसका गैस सही निकला । अब आशा की बारी थी । उसने guess किया । 
"आप बहुत हंसमुख स्वभाव के हैं । ज्यादा चिंता फिकर नहीं करते हैं" । 
"जी , बिल्कुल सही जवाब" । 
अब स्कोर 3-3 हो चुका था । अभी तक कोई जीता नहीं और कोई हारा नहीं था । आशा को पहले इस गेम में डर लग रहा था । उसने पहले कभी यह गेम खेला नहीं था । मगर उसे अब आनंद आने लगा था और इस खेल खेल में एक दूसरे की जानकारी भी मिल रही थी । 
अब बारी कुमार की थी । 
"साहित्यिक एप पर जो आपका नाम "दिव्या है , वह असली नहीं है" 
यह पढ़कर आशा चौंक गई । कुमार ने सही पकड़ा था । वह क्या लिखे ? सही या गलत ? सही लिखना ही उसे उचित लगा था इसलिए उसने लिखा
"जी सर, मेरा सही नाम आशा है" 
इससे कुमार को सदमा सा लगा । आशा ने किसी बोगस नाम से अपनी आई डी बनवा रखी है , यह उसे ठीक नहीं लगा । पहचान छुपाने की क्या जरूरत है ?   कुमार को झूठ वगैरह से बेहद नफरत थी इसलिए आशा का व्यक्तित्व कुमार को रहस्यमई लगा । उसने पूछा

"ग़लत नाम क्यों रखा साहित्यिक एप पर" ? 

आशा को लगा कि यह बातचीत तो अब गलत दिशा की ओर जाने लगी है । कुमार नाराज़ से लग रहे हैं इस नाम से । तो उसने सफाई में लिखा 

"सर, साहित्यिक एप पर बहुत से लड़के ऐसे हैं जो लड़कियों के आगे पीछे घूमते रहते हैं और उन्हें परेशान करते हैं । ग़लत मैसेज करते हैं । इससे बचने के लिए ही यह बोगस नाम रखा था" 

कुमार इससे संतुष्ट नहीं हुआ । उसने पूछा 
"फिर सही नाम क्या है ? और यह कैसे विश्वास हो कि वह नाम वाकई सही है" ? 

इस पर आशा को थोड़ा बुरा लगा । जब कोई किसी पर अविश्वास करता है तो उसे बुरा लगना स्वाभाविक भी है । लेकिन कुमार अपनी जगह सही था । सबूत आवश्यक है । बिना सबूत के तो कोर्ट भी नहीं मानता है ।

और आशा ने अपनी एक फोटो भेज दी । इसके अलावा आधार कार्ड की एक कॉपी भी भेज दी । आशा को हल्का गुस्सा भी आ रहा था मगर पता नहीं क्यों वह कुमार को खोना नहीं चाहती थी । हालांकि उसे अभी तक पाया भी नहीं था उसने । मगर खोने का डर बहुत बुरा होता है । 
आशा ने फिर लिखा 
"और कोई सबूत चाहिए, सर" ? 

कुमार को लगा कि उसने कुछ ज्यादा कड़ा व्यवहार तो नहीं कर दिया है कहीं ? मगर उसकी प्रकृति के हिसाब से यह ग़लत तो नहीं था । आदमी का सही रूप सामने आना ही चाहिए । एक फिल्म का गाना भी तो है न 

"क्या मिलिए ऐसे लोगों से जिनकी फितरत छुपी रहे ‌‌ । 
नकली चेहरा सामने आये , असली सूरत छुपी रहे ।। " 

इसलिए असलियत जानना जरूरी है । जब तक सामने वाले के बारे में यही पता नहीं हो कि वह कौन है तब तक उससे बात भी क्यों की जाए ?

जब काफी देर तक कुमार का कोई मैसेज नहीं आया तो आशा ने पूछा 
"कोई और भी दस्तावेज भेजने हैं क्या सर" ? 

कितना व्यंग्य भरा हुआ था इन शब्दों में ? कुमार को महसूस हो गया था कि आशा को बहुत बुरा लगा है । मगर कुमार यह भी जानता था कि उसने गलत कुछ नहीं किया है । सही नाम पते की जानकारी तो होनी ही चाहिए । इसमें गलत क्या है ? 

इसी उधेड़बुन में चार बज गए थे । आज की चैटिंग का समय समाप्त हो गया था । कुमार समय का बहुत पाबंद था । हर काम समय के हिसाब से ही करता था वह । इसलिए आज की चैटिंग बंद हो गई । 

शेष अगले


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3 Comments

Barsha🖤👑

01-Feb-2022 09:06 PM

Nice written

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Shalu

07-Jan-2022 02:06 PM

Very nice

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Hari Shanker Goyal "Hari"

07-Jan-2022 02:54 PM

Thanks

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